नोबेल पुरस्कार (भौतिकी) विजेता सर सीवी रमण की आज जयंती पर उन्हें शत-शत नमन

प्रकाश (Optics) के क्षेत्र में अपने उत्कृष्ट कार्य के लिए वर्ष 1930 में #नोबेल पुरस्कार (भौतिकी) विजेता सर #सीवी रमण की आज #जयंती पर उन्हें शत-शत नमन।

वे #विज्ञान के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले #एशियाई थे।उनका आविष्कार उनके नाम पर ही #रमण-प्रभाव के नाम से जाना जाता है।

डॉ.रमण का सूक्ष्म-अन्वीक्षण
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एक बार जहाज से ब्रिटेन जा रहे थे। जहाज की डेक से उन्होंने पानी के सुंदर नीले रंग को देखा। उस समय से उनको समुद्र के पानी के नीले रंग पर अन्य वैज्ञानिकों की व्याख्या पर शक होने लगा।वापिस आकर उन्होंने इस पर अपना शोध कार्य शुरू कर दिया।

उन्होंने आसमान और समुद्र का अध्ययन किया। वह इस नतीजे पर पहुंचे कि समुद्र भी सूर्य के प्रकाश को विभाजित करता है जिस से समुद्र के पानी का रंग नीला दिखाई पड़ता है। जब वह अपने लैब में वापस आए तो रमन और उनके छात्रों ने प्रकाश के बिखरने(scattering of light)या प्रकाश के कई रंगों में बंटने की प्रकृति पर शोध किया। उन्होंने ठोस, द्रव्य और गैस में प्रकाश के विभाजन पर शोध जारी रखा।

उनके इसी रिसर्च के नतीजे को आज विज्ञान में ‘रमण इफ़ेक्ट'(Raman’s Effect) या ‘रमण-प्रभाव’ कहते हैं।

क्या है रमण-प्रभाव?
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रमण-प्रभाव बताता है कि जब प्रकाश किसी transparent यानी पारदर्शी पदार्थ से गुजरता है तो उस दौरान प्रकाश के तरंगदैर्ध्‍य(wavelength) में बदलाव दिखता है। यानी जब प्रकाश की एक तरंग एक द्रव्य से निकलती है तो इस प्रकाश तरंग का कुछ भाग एक ऐसी दिशा में फैल जाता(scattering)है जो कि आने वाली प्रकाश तरंग की दिशा से भिन्न है।

प्रकाश के क्षेत्र में उनके इस काम के लिए 1930 में फिजिक्स में नोबेल प्राइज मिला। वे प्रथम भारतीय व्यक्ति थे जिन्हें इस सम्मान से नवाज़ा गया।

रमण-स्पैक्ट्रोस्कोपी का इस्तेमाल दुनिया भर के केमिकल लैब में होता है, इसकी मदद से पदार्थ की पहचान की जाती है। मेडिसिन क्षेत्र में सैल और टिश्यू पर शोध के लिए और कैंसर का पता लगाने के लिए इसका इस्तेमाल होता है। मिशन चंद्रयान के दौरान चांद पर पानी का पता लगाने के पीछे भी रमण-स्पैकट्रोस्कोपी का ही योगदान था।